आशायें और आशंकायें
जैसे हम जीना चाहते हैं वैसे ही जिया जा सकता है…
आशंकित रहेंगे तो आशंकायें सजीव हो समक्ष होंगी
और
आशांवित रहेंगे तो आशायें ….

जैसे हम जीना चाहते हैं वैसे ही जिया जा सकता है…
आशंकित रहेंगे तो आशंकायें सजीव हो समक्ष होंगी
और
आशांवित रहेंगे तो आशायें ….
बहुत खूब लिखा है आप ने
आपने पढ़ा , जाना, माना, सराहा …. धन्यवाद….!