हिन्दी दिवस पर समझना ऒर स्वीकारना भी होगा कि हिन्दी की दुर्दशा के दोषी ही नहीं हम मध्य भारतीय अपराधी भी हॆं!
हम हमारे स्वयं के ऒर अपनों के, अंग्रेजी ग्यान का बखान करते हुए, हिन्दी गिनती ऒर प्रचलित बोलचाल के शब्दों को भी जानने से अनजान बनते रहते 😜 हॆं!
यह ठीक वॆसी ही स्थिति हॆ जॆसे कि कोई व्यक्ति आशा से अधिक प्रगति कर अपने रहन सहन को पहले से ऊंचा उठाने में सफल हो जाये! तब अपने नये स्तरीय परिचितों के बीच, पिछले स्तर को आज भी जीती माँ के आ जाने पर , माँ को पहचानने से ही मना कर दे! माँ को नॊकरानी या भिखारन बताये! ऎसे अ-श्रवण को हम सभी नीच कहते हुये गॊरवांवित होते रहते हॆं!
किन्तु मातृभाषा के संदर्भ हममें से अधिकांश अपनी माँ से स्वयं को अपरिचित होने ऒर स्वयं को “गोरी मेम” का निकटस्थ बताते हुए नहीं कर रहे होते हॆं क्या ?
ऎसे कृतघ्न समूची दुनियां में शायद हम, मध्य भारतीय, हिन्दी भाषी अकेले ही होंगी!!!
शेष सभी के लिए विदेशी भाषा का ग्यान, मान ऒर ध्यान मातृभाषा से बहुत निचले स्तर पर हॆ!
#सत्यार्चन
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सत्य परिस्थिति